विवेक, बुद्धि व सूझबूझ को प्राप्त करने के लिए दाहिना मूलाधार चक्र की विशेष महत्ता
जब मूलाधार चक्र शुद्धि की बात आती है तो हम अक्सर दाहिने मूलाधार चक्र के विषय में भूल जाते हैं। यह चक्र निजी व सामूहिक परेशानियों व समस्याओं से मुक्ति के साथ सहजयोग की गहरी अवस्था प्रदान करता है। जिस सूझबूझ और विवेक की बात श्रीमाताजी ने बताई है वह इस चक्र की शुद्धि से भी प्राप्त होती है। आगामी नवरात्रि के ध्यान के दोरान हमे अनेक बार इस चक्र को शुद्ध करने का प्रयास करना चाहिए।
1. दाहिना मूलाधार चक्र श्रीकातिर्केय का निवास स्थल है, और वे ही हमारी रक्षा करते हैं आसुरी शक्तियों से।
2. दाहिना मूलाधार चक्र ही ज्ञान को प्रकाशित करता है और श्री गणेश के प्रति समर्पण विकसित करता है।
3. दाहिना मूलाधार इसीलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 11 एकादश रुद्रों में से दो रुद्र श्रीगणेश एवं श्रीकार्तिकेय हैंI रुद्र हमारी राक्षसी शक्तियों से रक्षा करते हैं और हमें शक्ति प्रदान करते हैं बाधाओं से लड़ने की। इसीलिए दाहिना मूलाधार और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। इड़ा नाड़ी के शुद्धिकरण और सशक्तिकरण के लिए।
4. ऐसा अनुभव किया गया है कि जब हमारे दाहिने मूलाधार चक्र में सुधार होता है तो बाँये स्वाधिष्ठान चक्र की पकड़ ढीली होती है।
5. श्री कार्तिकेय नर्क पर भी दृष्टि रखते हैं। श्री भैरवनाथ प्रेत बाधा से लड़ते लड़ते दाहिने मूलाधार चक्र तक आते हैं और श्रीकार्तिकेय के साथ समन्वय में काम करते हैं, हमारी सूक्ष्म प्रणाली में निहित बाधाओं को विफल करने के लिए और उन्हें वापस नर्क में भेजने के लिए जहाँ से वो आई थीं।
6. श्री कार्तिकेय की शक्ति हमारी अबोधिता का संरक्षण करती हैं, इसीलिए भी अत्यावश्यक है। जब कुंडलिनी माँ त्रिकोणाकार अस्थि से उठ कर सहस्त्रार की ओर अग्रसर होती हैं, दाहिना मूलाधार चक्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, कुंडलिनी की राह में आने वाली पकड़ से मुक्ति दिलाने में।
7. यह देखा गया है कि जब दाहिने मूलाधार में सुधार होता है तो हमारी दायीं नाड़ी में भी सुधार होता है दो कारणों से, चूंकि मूलाधार आज्ञा चक्र से सीधे जुड़ा है तो दाहिने मूलाधार में सुधार होने से दाहिने आज्ञा चक्र में भी सुधार होता है, और वह भाल पर स्थित अहंकार को नियंत्रित करने वाले रुद्र की भी मरम्मत करता है। (मस्तक पर स्थित 11 रुद्रों में से दो रुद्र अहंकार और प्रति अहंकार को नियंत्रित करने का काम करते हैं।)
7. अहंकार घटने से हमारे अंदर श्रद्धा और प्रज्ञा (प्रकाशित ज्ञान) का विकास होता है।
ईसा मसीह अपनी माता का कितना ध्यान रखते थे, शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। उनका मातृप्रेम, अपनी माता के प्रति उनकी समझ, उनकी नम्रता, उनकी भक्ति, उनका समर्पण, उनकी श्रद्धा का शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है, और आप जानते हैं कि श्रीगणेश उत्क्रांति को प्राप्त हो कर ईसा के रूप में अवतरित हुए थे। अतः पीछे की ओर वे श्रीगणेश और सामने वे श्रीकार्तिकेय के अति शक्तिशाली रुद्र के रूप में बिराजे हैं और इसीलिए उन्हें सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।
प्रार्थना, अभिव्यक्तियॉं, युक्तियॉं दाहिने मूलाधार चक्र में सुधार के लिए:
दाहिना हाथ श्रीमाताजी के चित्र की ओर तथा बाँया हाथ धरती पर रखते हुए प्रार्थना करें
“माँ कृपया मेरे दाहिने मूलाधार को पवित्र करें तथा उसमें सुधार करें।”
“श्रीमाताजी आप सभी राक्षसों का वध करती हैं।”
“श्रीमाताजी आपका कृपापात्र बनने की योग्यता मुझे दीजीए।”
“श्री माताजी मैं जो कुछ भी करता हूँ वह आपको प्रसन्न करने के लिए ही करता हूँ”
“श्रीमाताजी मुझे श्रीकार्तिकेय के गुणों से आशीर्वादित करें”
“श्रीमाताजी श्रीगणेश जैसे पूर्ण समर्पण और दिव्य ज्ञान से मुझे आशीर्वाद कीजिए।”
निम्न लिखित 3 मन्त्र भी लिए जा सकते हैं। :--
श्री कार्तिकेय साक्षात,
श्री राक्षस हन्त्री साक्षात,
श्री राक्षसग्नि साक्षात।
यह अनुभव किया गया है कि जैसे दाहिने मूलाधार में सुधार
होता है हमारी व्यर्थ की मानसिक गतिविधीयां कम हो जाती हैं और आंतरिक शांति बढ़ने लगती है। अतः दाहिना मूलाधार महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है संतुलन स्थापित करने में तथा निर्विचार समाधि स्थापित करने में। मगर इसका अभिप्राय यह नहीं है कि हमें बाँये और मध्य मूलाधार चक्र की उपेक्षा करनी चाहिए। वास्तव में श्रीनिर्मल गणेश और श्रीगौरी गणेश की जागृति के बिना श्रीकार्तिकेय की जागृति संभव नहीं है।
मूलाधार में सुधार के लिए इस प्रकार ध्यान करना चाहिए (जैसा श्रीमाताजी ने श्री गणेश पूजा 1986 में बताया था।)
बॉंया हाथ श्रीमाताजी की ओर तथा दाहिना हाथ धरती पर रखें। बाँये मूलाधार चक्र पर चित्त लगा कर श्री निर्मल गणेश का मंत्र लें। पूर्ण हृदय से कहें:
“श्रीमाताजी आपकी कृपा से मैं अबोध हूँ।” कुछ मिनटों तक ध्यान करें।
दोनों हाथ गोद में रख कर मध्य मूलाधार पर चित्त लगा कर श्रीगणेश गौरी का मंत्र लें। पूर्ण हृदय से कहें “श्रीमाताजी मुझे अबोध बना दें।” कुछ मिनटों तक ध्यान करें।
दाहिना हाथ श्रीमाताजी की ओर तथा बाँया हाथ धरती पर, चित्त को दाहिने मूलाधार चक्र पर लगाएं तथा पहले श्री कार्तिकेय मंत्र लें। पूर्ण हृदय से कहें “श्रीमाताजी कृप्या मुझे अपनी कृपा के योग्य बना दीजिए।” कुछ मिनटों तक ध्यान करें। इसके बाद श्री राक्षसहन्त्री का मन्त्र लें और दाहिने मूलाधार पर ध्यान लगाएं। पूर्ण हृदय से कहें
“श्रीमाताजी आप मेरे अंदर की सारी बुराई की विनाश-कर्ता हैं।” कुछ देर तक ध्यान करें।
इस तरह चित्त शुद्ध हो जाता है और हम निर्विचार समाधि में चले जाते हैं।
सुबह का ध्यान समाप्त करें और यह मन्त्र लें “॥
ॐ त्वमेव साक्षात श्री गणेश गौरी साक्षात, श्रीआदिशक्ति माताजी श्रीनिर्मला देव्यैः नमो नमः॥
इस तरह ध्यान करके हम अनुभव करते हैं कि हमारा पूरा दिन अच्छी तरह व्यतीत होता है।
श्रीमाताजी का कहना है कि हम इस तरह हर दूसरे दिन सुबह का ध्यान करें तो वर्ष भर में उत्थान के मार्ग में आने वाली सारी बाधाएं दूर हो जाती हैंl