Tuesday, December 3, 2019

माँ तू ...

दिखती हैं हमेशा मझे दुआओं से भरी आँखें तेरी
बता ना माँ क्यों करती है तू इतनी परवाह मेरी
मैं तो समेटे हूँ खुद को खुद ही में सदा
फिर भी मुझ ही पे सदा बानी रहती है छाया तेरी

तेरे अपनों के इर्द गिर्द ही सदा पता हूँ तुझे
उनकी इच्छाओं का पूरा होना ही तुझे सूझे
मुझे भी सीखा कैसे जीते हैं दुसरो के लिए
बात है छोटी पर है मेरी समझ के परे

पिताजी ने भी गुस्से में तुझे कितनी कही है
उनकी हर बात सदा तूने हँस के सही है
सुनकर सदा रिश्तेदारों के उलाहनें
माँ तू हमेशा कैसे मुस्कुराती रही है

नहीं दिखी तू कभी गुस्से में मुझे
सच कहना, क्या कभी गुस्सा नहीं आता तुझे
बता सच के तुझे है अब वास्ता मेरा
कोई तो इस जग में बैरी होगा तेरा

कितनी आसानी से प्यार जाता देती है तू
हर भावना को सहज बना देती है तू
मन साफ़ है तेरा दर्पण की तरह
हर द्वेष कैसे दिल से मिटा देती है तू

कई बार तुझपे झल्लाया हूँ मैं
हर बार ही तो ऐसा करके पछताया हूँ मैं
भूल जाता हूँ गुस्से में की कितनी अनमोल है तू
भूल जाता हूँ की तेरा ही तो जाया हूँ मैं

मेरी हर एक छोटी उपलब्धि पे हर्षायी है तू
हर कदम पे संभालना मुझे सिखलायी है तू
हर कोई दीखता है किर्तज्ञ पाकर तुझे
हर रिश्ते को निपुणता से निभाती आयी है तू

मेरे पास जो कुछ भी है तुझसे ही तो आया है
यह रूप रंग भी तो माँ तुझसे ही पाया है
मुझे हर गुण हर संस्कार मिले हैं तुझसे
तुझसे ही मिली मुझको यह काया है

मेरे इस जनम का हर पुण्य मिले माँ तुझको
जब भी जनम लू धरा पे तो मिले तू माँ मुझको
तेरे सिवा अब नहीं है मुझे चाह किसी की
तेरे आँचल में जो मिल जाये जगह मुझको

मेरे जीवन का एक मात्र आकर्षण है तू
मेरी हर सोच में सम्मिलित हर क्षण है तू
कैसे बताऊ मेरे लिए कितनी अनमोल है तू
मेरी आराधना, मेरी अर्चना, मेरा समर्पण है तू

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