Wednesday, December 4, 2019

सहज की गंगा बहाते चलो

निर्मल-ज्योत जलाते चलो..
सहज की गंगा बहाते चलो।
मधुर सहज-वीणा बजाते हुए..
सोते हुओं को जगाते चलो।।
  सहज की गंगा बहाते चलो..

माँ शीतल हैं.. माँ निर्मल हैं..
श्री माँ हैं.. महामाया.. ।
आशीष उनके अनंत पाने को..
यह शीश हमने झुकाया।।

यह संदेश घर-घर सुनाते चलो..
  सहज की गंगा बहाते चलो..

निराकार ब्रह्म.. शूक्ष्म तत्व बन..
यत्र सर्वत्र समाया।
पूर्ण विश्व में.. सभी हैं अपने..
नहीं है कोई पराया।।

सहज मार्ग सबको दिखाते चलो..
  सहज की गंगा बहाते चलो..

समझ के चंदन.. व्यर्थ पतित कण..
जो तन-मन पे लगाते।
मोह-माया में फंसे रहें जो..
सुकर्म.. स्वधर्म भुलाते।।
उन सबको सहजी बनाते चलो..
  सहज की गंगा बहाते चलो..

निर्मल-ज्योत जलाते चलो..
  सहज की गंगा बहाते चलो.. 

No comments:

Post a Comment