Tuesday, December 3, 2019

अब प्रभु कल्कि बनकर आएंगे

कर विकट तपस्या रावण हुआ अहंकारी
देने लगा यातना, आहत हुए नर नारी
हर सुखी पे दुःख का पहाड़ था टुटा
बढ़ने लगी चहु ओर धरा पे लाचारी

अति दुष्ट, क्रूर, अधर्मी और मायावी
ऐसे रावण से कुपित हुई दिशा सारी
जब सहनशीलता की सीमा टूटी
श्री हरी के समक्ष जा पहुंची भू देवी

दुखी हो, रो सुनाई उन्हें अपनी व्यथा
पर श्री हरी से तो कुछ भी छुपा न था
समय शेष था रावण के अंत का
श्री राम के जनम से बढ़ी आगे कथा

बाल्यकाल, शिक्षा - दीक्षा, विवाह,
और 14 वर्ष वनवास के,
दिया पर्याप्त समय रावण को
की वह अपनी भूल मान ले

अज्ञान जब अंदर होता छुपा
तो कैसे दिखे की सही गलत है क्या
पर परमात्मा देता है अवसर
की हम धरम की राह पर आ मिलें

अगर फिर भी भरे घड़ा पाप का
तो कौन लेगा भला इन्हें बचा
अंत मिलेगा पापी रावण सा
अगर अब भी अधर्म से न हिले

रामायण की कथा कहे यही
की हर कुकर्मी का अंत होता है
पर परमात्मा भी उसे पहले
सुधरने के पर्याप्त अवसर देता है

अगर फिर भी नहीं सुधरेगा तो
अब प्रभु कल्कि बनकर आएंगे
लूटा धन, पद बचा न सकेगा
प्राण भी हर लिए जायेंगे

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